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बुधवार, १२ एप्रिल, २०१७

*सत्य और अहिंसा धर्म, यही श्रेष्ठ मानव धर्म*

*सत्य और अहिंसा धर्म, यही श्रेष्ठ मानव धर्म*

(१) सभी जीव वासना से प्रेरित है. वासना बंधन नही, जीवन की आवश्यकता है. इस लिए वासना के बंधन से मुक्त होनेका अध्यात्म  सत्य कैसे माने? लेकिन वासनाओंको मर्यादा के बंधन से काबूमे रखनेकी बात तार्किक और कानूनी तौर पर सत्य लगती है और इसका अनुभव हर एक इन्सान कर सकता है.

(२) यह भी सत्य है की, वासनाएँ अंधी होती है. उन्हे अपनी नैसर्गिक मर्यादा दिखती नही. वह अपनी मर्यादा के बाहर जानेकी हमेशा कोशीश करती है. अमर्याद वासना समाधान के चक्कर मे वह अपनी मर्यादा की सीमांये पार करती है और फिर मौत के कुवेंमे गिर जाती है.

(३) इस नैसर्गिक सत्य को सदैव ध्यान मे रखते हुये वासनाओंको उनकी मर्यादा के अंदर काबूमे रखनेकी नियंत्रण प्रक्रिया यही कानूनी प्रक्रिया है. वासना पर नियंत्रण पाने के लिये हिंसा से नही, अहिंसा से काम लेना पडता है. 

(४) मर्यादा भंग ही हिंसा का उगमस्थान है. इस लिये सत्य और अहिंसा का धर्म ही श्रेष्ठ मानव धर्म है. क्योंकी वही मानव प्राणी का नैसर्गिक धर्म है. लेकिन यह भी बात सच है की, यह श्रेष्ठ  मानव धर्म पुरी दुनिया का एकमेव सत्य धर्म नही है. इस धर्म का जादा से जादा प्रयोगशील आचरण केवल एक मानव दुसरे मानव के साथ ही कर सकता है. किसी क्रूर और हिंसक जानवर के साथ इस मानव धर्म का प्रयोग असंभव है.

(५) गौतम बुध्द ने इस धर्म को अच्छी तरह जाना और महात्मा गांधी ने इसे अच्छी तरह निभाया. *बी.एस.मोरे, वकील*

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