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शुक्रवार, ७ एप्रिल, २०१७

आराम हराम है!

आराम हराम है!

(१) बचपन से सुनता आ रहा हूं मै चाचा नेहरू का प्रसिद्ध विचार "आराम हराम है"! लेकिन बचपन से ही "आराम कम और हरामखोरी जादा" यही अनुभव लेते आ रहा हूं. स्कूल से देखते आ रहा हूं की, सब लोग भाग रहे है. किस दिशा मे और किस लिये, यह तो समझ मे नही आ रहा था. लेकिन भागदौड दिख रही थी.

(२) जैसे जैसे मेरी उमर बढती गयी, पढाई आगे निकलती गयी, विचार तेज होते गये, वैसे वैसे मालूम होते गया की यह भागंभाग दो प्रमुख शक्तीयों के पिछे है, एक है समय और दूसरा है पैसा! बादमे यह भी मालूम हूआ की, दुनिया मे पैसा इतना बलवान है की उससे सत्ता, संपत्ती, न्याय सबकुछ मिल सकता है. तभी से मन मे ठान लिया की, जिन दो चीजोंके लोग गुलाम है उनको ही मन की शक्ती से आव्हान दूंगा. दुनिया मे सबसे ताकदवर एक ही  शक्ती है, जिसे कोई लोग कुदरत कहते है तो कोई लोग भगवान कहते है, उस शक्ती को मेरा खुदा, मेरा मार्गदर्शक समझकर समय और पैसा इन दोनो शक्तीयों को छेडता गया.

(३) क्या चक्कर है इस दुनिया का? धनवानों के पास इतनी संपत्ती जमा हुई है की, गिनना  मुश्किल है और फिर भी धनवान पैसे के पिछे भाग रहे है और गरीबों के पास पैसा नही इसलिये गरीब धनवानों के पिछे भाग रहे है. पुरा भागंभाग का खेल! मैने मन ही मन मे तय कर लिया था की, इस खेल मे भाग नही लूंगा और इस खेल के चक्कर मे भागूंगा नही. दूरसे ही इस खेल की मजा लूंगा.

(४) सातवी कक्षा से मेने पैसा कमाना शुरू किया, लेकिन अपनी ढंगसे, अपने रूबाब से. कपडा मिल कामगार का मै बेटा ठहरा! खानदानी गरीबी और अनपढगिरी दोनों के बिछमे पिसता गया, लेकिन पढता गया, जीने के लिये जितना पैसा चाहिये उतना कमाता गया. बँक बेलेंस की कभी पर्वा नही की, वो तो हमेशा झिरो ही था. फिर भी चाल थी मेरी और अब भी है, एक राजा की तरह जीने की! लोग हंसी मजाक उडाते थे और अब भी उडाते है, यह कहकर की जेब मे पैसा नही और खुदको राजा समझता है.

(५) कानून की शिक्षा पुरी करने के बाद शादी की, एक बच्चीको जन्म भी दिया और लोगोंको न्याय देने के लिये बडे रूबाब से वकालत शुरू की. लेकिन सच बात तो यह है की, मै खुद को ही न्याय न दे सका. लोगोंकी बात तो दूर है. वकालत का अनुभव अजीब रहा. समय और पैसा यह दो शक्तीयों ने मुझे वहां भी बहोत परेशान किया. मै तो उनके पिछे भागने के खिलाफ था. भागंभाग मुझे पसंद नही थी. मै निश्चित मन से इन दोनो शक्तीयों को चुनौती देता गया. "मै अपनी औकात मे हूं, तुम दोनो अपनी औकात मे रहो" ऐसा ही कुछ बोलता गया. मेरी मर्यादा मुझे मालूम थी और मालूम है. उनकी मर्यादा मुझे मालूम न थी. इसलिये गिरता गया, फिर संभलता गया. 

(६) राजा जैसे रहने की बिमारी बचपन से अभी तक चालू है. भगवान की शक्ती ने इस खतरनाक बिमारी को बडे प्यार से संभल के रखा है. आज भी शान से मै खुदको दुनिया का सबसे बडा अमीर समझता हूं. क्योंकी दुनिया को भगानेवाला समय और दुनिया जिसके पिछे भाग रही है वो पैसा, इन दोनोंको मैने अब तक तो अपने काबूमे, अपनी मुठ्ठी मे रखा है. आगे की भगवान ही जाने. जीवन मे कभी भी मैने इन दोनोंको जादा महत्त्व दिया नही, ना कभी दूंगा. इन दोनोंके पिछे भागना छोडकर अपनी मर्यादा मे रहकर जीवन का हर पल कैसे आनंद और शांती से जिया जा सकता है इसका मैने सदैव विचार किया और इस कोशिश मे कामयाब रहा. मालूम नही आगे क्या होगा? शायद समय और पैसा यह दोनो शक्तीयां मेरी पुरी दुश्मन हो ही गयी होगी. जलन से मेरा बदला चुकाने के लिये इंतजार मे भी होगी. इन दोनोंके सामने जिंदगी भर मै कभी झुका नही. अब भगवान को एक ही प्रार्थना, "राजा जैसे जिया हूं, तुम्हारी ताकद पर और जब मेरा अंत समय आयेगा तब मेरा अंत भी राजा जैसा कर"! -बी.एस.मोरे, वकील

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